Sunday, May 3, 2020

हिंगलाज माता और डोडिया राजपूत का इतिहास

जय हिंगलाज माता जी





देवी माँ का मंत्र । 

ओम हिंगुले परम हिंगुले तनु शैक्ति मन 

शिवे ओम श्री हिंगुलायनमः श्री हिंगलाज माता की जय 

हिंगलाज देवी से सम्बन्धित छंद गीत अवश्य मिलता है। 

सातो द्वीप शक्ति सब रात को रचात रास। 

प्रात:आप तिहु मात हिंगलाज गिर में॥ 

अर्थात = सातो द्वीपों में सब शक्तियां रात्रि में रास रचाती है और प्रात:काल सब शक्तियां भगवती हिंगलाज के गिर में आ जाती है। यह हिन्दू देवी सत्ती को समर्पित इक्यावन शक्तिपीठों में से एक है। इस देवी को हिंगलाज देवी या हिंगुला देवी भी कहते हैं। उत्पत्ति की एक कथा के अनुसार जब देवी सत्ती ने आत्मदाह किया तो भगवान शिव जी उनके शव को लेकर ब्रह्मांड में घूमने लगे। शिव के मोह को भंग करने के लिए भगवान विष्णु ने सत्ती के शरीर को 51 खंडों मे विभक्त कर दिया जहाँ - जहाँ सत्ती के अंग- प्रत्यंग गिरे वह स्थान शक्तिपीठ कहलाये । केश गिरने से महाकाली, नैन गिरने से नैना देवी, कुरूक्षेत्र मे गुल्फ गिरने से भद्रकाली, सहारनपुर के पास शिवालिक पर्वत पर शीश गिरने से शाकम्भरीआदि शक्तिपीठ बन गये सती माता के शव को भगवान विष्णु के सुदर्शन चक्र से काटे जाने पर यहां उनका ब्रह्मरंध्र (सिर) गिरा था। इस लिए हिंगलाज देवी के रूप में पूजा जाता है गुजरात और राजस्थान में भी उनके लिए समर्पित मंदिर बने हुए हैं
विशेष रूप से संस्कृत में हिंदू शास्त्रों में हिंगुला, हिंगलाजा और हिंगुलता के नाम से जाना जाता है। देवी को हिंगलाज माता (मां हिंगलाज), हिंगलाज देवी, हिंगुला देवी (लाल देवी या हिंगुला की देवी) और कोट्टारी या कोटवी के रूप में भी जाना जाता है। 
यह डोडिया राजपूत की कुलदेवी है
परशुराम जी द्वारा 21 बार क्षत्रियों का अंत किए जाने पर बचे हुए क्षत्रियों ने माता हिंगलाज से प्राण रक्षा की प्रार्थना की। माता ने क्षत्रियों को ब्रह्मक्षत्रिय बना दिया इस से परशुराम से इन्हें अभय दान मिल गया।


एक मान्यता यह भी है कि रावण के वध के बाद भगवान राम को ब्रह्म हत्या का पाप लगा। इस पाप से मुक्ति पाने के लिए भगवान राम ने भी हिंगलाज देवी की यात्रा की थी। श्री राम ने यहां पर एक यज्ञ भी किया था, श्री राम के अलावा यहा परशुराम, गुरू नानक देव, गुरू गोरखनाथ, दादा माखन जैसे सिद्ध संत-महात्मा आ चुके है 

ज्वालामुखी शिखर पर-चंद्र गूप ताल का रिश्ता भगवान राम से भी बताया जाता है। हिंगलाज माता मन्दिर वर्तमान में बलूचिस्तान जो पाकिस्तान में है 




तनोट माँ 




हिंगलाज माता का दूसरा रूप तनोट माता है (तन्नोट माँ) का मन्दिर जैसलमेर जिले से लगभग (130)एक सौ तीस कि॰मी॰ की दूरी पर स्थित हैं। तनोट राय को हिंगलाज माँ का ही रूप कहा कहा जाता है। हिंगलाज माता जो वर्तमान में बलूचिस्तान जो पाकिस्तान में है यह मन्दिर भाटी राजपूत नरेश तणुराव ने वि॰सं॰ 828 में तनोट का मंदिर बनवाकर मूर्ति को स्थापित किया था जैसलमेर के पड़ौसी इलाकों के लोग आज भी इस माता को पूजते आ रहे हैं। 


माता का चमत्कार= भारत और पाकिस्तान के मध्य जो सितम्बर 1965 को लड़ाई हुई थी, उसमें पाकिस्तान के सैनिकों ने मंदिर पर कई बम गिराए थे लेकिन माँ की कृपा से एक भी बम नहीं फटा था। इस लड़ाई में करीब 3000 बम बरसाए, 450 गोले मन्दिर परिसर में गिराये गये लेकिन
मंदिर को एक भी खरोंचा तक नहीं आई, ये बम आज भी मन्दिर परिसर के म्यूजियम में पड़े है तभी से सीमा सुरक्षा बल के जवान इस मन्दिर के प्रति काफी श्रद्धा भाव रखते हैं। 1965 में सुरक्षा सीमा बल (BSF) ने यहा चौकी स्थापना कर इस मन्दिर की पूजा अर्चना व व्यवस्था का कार्यभार संभाला तथा वर्तमान में मन्दिर प्रबंध संचालन एक ट्रस्ट द्वारा किया जा रहा है 1971 में भारत-पाकिस्तान के युद्ध में पंजाब रेजिमेंट और सीमा सुरक्षा बल ने लोंगेवाला में शत्रु के टैंको की धज्जियां उड़ा दी थी लोंगेवाला की जीत के बाद एक विजय स्तम्भा का निर्माण किया गया अब हर वर्ष 16 दिसंबर को उत्सव मनाया जाता है हर वर्ष आश्विन और चैत्र नवरात्रा में यहां विशाल मेले का आयोजन किया जाता है





इतिहास = प्रचीन समय में मामड़िया नाम के एक चारण थे, जिनके कोई 'बेटा-बेटी' अर्थात कोई संतान नहीं थी, वह संतान प्राप्ति के लिए लगभग सात बार हिंगलाज माता की पूरी तरह से पैदल यात्रा की। एक रात को जब उस चारण (गढवी ) को स्वप्न में आकर माता ने पूछा कि तुम्हें बेटा चाहिए या बेटी, तो चारण ने कहा कि आप ही मेरे घर पर जन्म ले लो।
हिंगलाज माता की कृपा से उस चारण के घर पर सात पुत्रियों और एक पुत्र ने जन्म लिया। इनमें से एक आवड माँ थी जिनको तनोट माता के नाम से जाना जाता है। सात पुत्रिया देवी चामकारो से परिपूर्ण थी उन्होंने हूणों के आक्रमण से रक्षा की थी, राजा तणुराव ने इस स्थान को अपनी राजधानी बनाया।



डोडिया राजपूत इतिहास की जानकारी




1. प्रथम कुलदेवी - हिंगलाज माता (नवमी की पूजा)

2. दूसरी देवी - नागणेची माता (आठम की पूजा)

3. तीसरी कुलदेवी - चामुंडा माता (दशमी की पूजा)
(विशेष मध्यप्रदेश) में चामुंडा माता डोडिया की कुलदेवी के रूप में पूजनीय कुछ अन्य क्षेत्र में भी डोडिया की कुलदेवी देवी है 

4. जन्म स्थली - आबू अग्निकुण्ड  (केले के डोड़े से)

5. वंश –  अग्निवंश


6. निवास - मुल्तान नगर (दिपंग देव की राजधानी)


7.वेद - यजुर्वेद 

8. डोडिया राजपूत राजवंश की उत्पत्ति – 
(क्षत्रिय वंश की पुनः स्थापना के लिए डाली गई हवन सामग्री के आबू अग्निकुण्ड से निकले छीटे असुरी शक्ति को रोकने के लिए रोपे गये केले के कदली स्तंभ जिनके फलस्वरूप आदिपुरुष दिपंग डोडिया का केले के डोडे पुष्पकली से जन्म हुआ जिनका वंश डोडिया राजपूत कहलाया

9 . शाखा - स्वतंत्र डोडिया राजपूत राजवंश 
डोडिया राजपूत किसी और राजपूत राजवंश की शाखा नहीं है
डोडिया राजपूत स्वतंत्र राजपूत है 

10 . गंगावत डोडिया, पुरावत डोडिया, इन्द्रभाणोत डोडिया लगाने का कारण - दो भाइयो के नाम पर गंगावत और पुरावत डोडिया कहलाने लगे मध्यप्रदेश में गंगा सिंह जी डोडिया के नाम पर गंगावत डोडिया कहलाये, गंगा सिंह जी डोडिया के वंशज मध्यप्रदेश में पुर सिंह जी डोडिया के नाम पर पुरावत डोडिया कहलाये पुर सिंह जी डोडिया के वंशज इन्द्रभाणोत डोडिया लावा (सरदारगढ़) ठिकाने के इन्द्रभाण सिंह जी डोडिया के वंशज इन्द्रभाणोत डोडिया कहलाये डोडिया राजपूत के शासन का नाम डोडिया के साथ कुछ क्षेत्र में शासन का नाम भी लगाते है शासन का नाम लगाने से डोडिया की अलग शाखा नहीं है, यहां डोडिया राजपूत शासक का नाम डोडिया के साथ जोड़ा गया है, शासक का नाम जैसे गंगावत डोडिया, पुरावत डोडिया, इन्द्रभाणोत डोडिया, आशावत डोडिया, मसावत डोडिया यह इस्तेमाल करते है, मध्यप्रदेश क्षेत्र में अधिकांश क्षेत्र में केवल डोडिया शब्द इस्तेमाल होता है मेवाड़ में अधिकांश क्षेत्र में केवल डोडिया शब्द इस्तेमाल होता है

11. गोत्र - शांडिल्य (दिपंग डोडिया की उत्पति के समय हवन कार्य में सहयोगी व मार्गदर्शक गुरु शांडिल्य ऋषि अग्निकुण्ड के चारो ओर केले के कदली स्तंभ रोपकर हवन कार्य का असुरी शक्ति से रक्षा कवच बनाने वाले गुरु शांडिल्य ऋषि थे) 

12. डोडिया राजवंश के कुलगुरु - शांडिल्य ऋषि 

13. घोडा - सावकरण

14. नगाड़ा  - बिजुवर

15. तोप - महाकाली 

16. बन्दूक - बागवानी 

17. हाथी - ऐरावत 

18. नाई - (सोलकी) सोलंकी

19. ढोल – राजवीदार 

20. नदी – सरयू

21. सत्ती – रम्भादेवी

22. कंवर – कलेशजी

23. धुनी – सागनाड़ा हिमालय पर्वत पर 

24. गणेश – गुणबाय

25. भेरू – काला

26. ╃ तलवार – रणबकी/रणजीत

27. ढोली – दात्यो

28. ढोल के डाको – कडषाण

29. चूड़ो – हाथी

30. प्रथम राज्य - गढ़ गिरनार 

31. डोडिया वंश के आदिपुरुष व प्रथम पुरुष – दिपंग देव 
( केले के डोडे पुष्पकली से उत्पन्न होने वाले पुरुष दिपंग देव डोडिया)

32. डोडिया वंश का वृक्ष - केला 
नोट – डोडिया वंश द्वारा केले का खाना निषेध है ( जिनको इस सम्बन्ध में जानकारी है वह केले को नहीं खाते खास हमारे परिवार के बड़े व्यक्ति वर्तमान में कुछ परिवार को छोड़कर लगभग हर क्षेत्र का डोडिया परिवार केला खाता है राजस्थान में आज भी कुछ परिवार है जिनके मुखिया केला नहीं खाते है 

33. डोडिया वंश की नखइन्द्रभाणोत

34. हिंगलाज माता जी की प्रसादि पूजा - चावल, लापसी की मिट्ठी पूजा नवमी को

35. नागणेची माता की पूजा - आठम को धुप, दिपक किये जाते है

36. डोडिया वंश को बेचरा माता द्वारा प्रदान शस्त्र - मेवाड़ी तलवार

37. शार्दूलगढ़ गुजरात के राव जसकरण डोडिया द्वारा मेवाड़ के महाराणा को चित्तोड़ (रावलगढ़) में प्रदान चमत्कारी शस्त्र - मेवाड़ी तलवार ( वह तलवार आज भी मेवाड़ की सांस्कतिक धरोहर है तलवार के प्रभाव से महाराणा हम्मीर सिंह ने चित्तौड़ राज्य पुनः जीत लिया उसी तलवार से महाराणा प्रताप ने मुगलों से संघर्ष किया और विजय प्राप्त की)

38. कुल देवता - समुंद्र देव 
डोडिया वंश के आदिपुरुष दिपंग देव - हिंगलाज माता और समुंद्र की पूजा करते थे दिपंग की राजधानी मुल्तान थी
(वर्तमान में भैरू जी को कुलदेवता के रूप में पूजा जाता है, अधिकांश क्षेत्र में)

प्रथम कुलदेवी - माँ हिंगलाज का ब्रहमणी अवतार है इस लिए इनके शराब मांस खाना पीना उनका अपमान है विधि विधान से अलग है

दूसरी नेता नागणेची - यह माता बदनोर महाराजा राव संडोजी डोडिया जोधपुर महाराजा के यहा शादी करने गये बारात वापस आ रही थी जोधपुर से बदनोर आते समय रास्ते में रात हो गई शुभह देखा की पालकी में वजन ज्यादा है पालकी के अंदर देखा तो अंदर देवी बैठी है उनसे पूछा हमारे पहले से देवी है माता ने जवाब दिया आज से में भी पूजी जाऊँगी तब से माता नागणेची पालने आयी नागणेची माता राठौर वंश की कुल देवी है लेकिन नागणेची माता पालने आई तब से हिंगलाज माता के साथ डोडिया वंश की पूजनीय देवी बन गई





कुंदन सिंह डोडिया S/O ठाकुर हिरा सिंह डोडिया 

ठिकाना नरदास का गुड़ा, दिवेर मेवाड़ [सरदारगढ़]
तहसीलदेवगढ़
जिला -     राजसमंद 
Contact = 9166288080, 75688563505
Whatsapp Number  = 9166288080

3 comments:

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