Monday, May 25, 2020

सरदारगढ़ का इतिहास और सभी राजा

सरदारगढ़ का इतिहास और सभी राजा




महाराणा लाखा के समय से डोडिया राजपूतो को मेवाड़ में जागीर मिली मेवाड़ में बसने के बाद 13वी पीढ़ी में सरदारगढ़ पर डोडिया राजपूतों का शासन रहा मेवाड़ में बसने के बाद राजाओ की जानकारी :-

1. ठाकुर धवल सिंह डोडिया S/O सिंह डोडिया :- ये सारदूलगढ़ (काठियावाड़) के सिंह डोडिया के पुत्र थे महाराणा लाखा की माता द्वारिका यात्रा के समय काबा लुटेरों ने मेवाड़ के रक्षा-दल पर आक्रमण कर दिया तब सारदूलगढ़ के राव जसकरन का वंशज सिंह डोडिया ने अपनी जान पे खेल कर बचाया परन्तु सिंह डोडिया वीर-गति को प्राप्त हुए सिंह डोडिया के पुत्रों कालु और धवल ने अपने ठिकाने सारदूलगढ़ में राजमाता का आतिथ्य-सत्कार तथा युद्ध में घायल सैनिकों का इलाज किया तत्पश्चात राजमाता को द्वारिका यात्रा करवाकर डोडिया पुत्रों ने उन्हें मेवाड़ सीमा तक पहुँचाया चित्तोड़ लौटकर राजमाता ने महाराणा लाखा को इस घटना की पूरी जानकारी दी तत्काल ही महाराणा ने ठाकुर धवल और ठाकुर कालु को अपने राज्य में बुलवाकर उन्हें रतनगढ़, नन्दराय और मसुदा सहित पांच लाख की जागीरी देकर 1387 ई. में अपना सामंन्त बनाया महाराणा लाखा की माता का दोबारा तीर्थ यात्रा पर जाना हुआ, तो महाराणा ने साथ में धवल डोडिया को भी सुरक्षा खातिर भेजा ! इस बार छप्पर घाटा के हाकिम शेर खां ने हमला किया धवल डोडिया ने शेर खां को पराजित कर उसका लवाजिमा छीन लिया महाराणा मोकल (1418-1433 ई) और नागौर के हाकिम फ़िरोज़ खा के मध्य युद्ध हुआ इस युद्ध में महाराणा का घोड़ा मारा गया यह देखकर ठाकुर धवल के पुत्र सबल सिंह ने तुरन्त अपना घोड़ा महाराणा की सेवा में पेश किया तथा स्वयं लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए

2. ठाकुर सबलसिंह डोडिया :-

3. ठाकुर नाहरसिंह डोडिया :-

4. ठाकुर किशनसिंह डोडिया :- मेवाड़ के महाराणा रायमल्ल और मांडू के सुल्तान गयासुद्दीन के सेनापति जफर खां के बीच युद्ध हुआ, जिसमें ठाकुर किशनसिंह डोडिया भी बड़ी बहादुरी से लड़े |

5. ठाकुर कर्णसिंह डोडिया :- ये महाराणा सांगा व बाबर के बीच हुए खानवा के युद्ध (17-March-1527 .) में वीरगति को प्राप्त हुए |

6. ठाकुर भाण सिंह डोडिया (1527-1534) :-  महाराणा विक्रमादित्य के शासनकाल में गुजरात के बादशाह बहादुरशाह ने चित्तौड़ पर आक्रमण किया 1534 ई. में चित्तौड़ का दूसरा साका हुआ, जिसमें केसरिया फेहराते हुए ठाकुर भाण सिंह बहुत वीरता के साथ लड़े और वीरगति को प्राप्त हुए 

7. ठाकुर सांडा डोडिया  (1534-1567 ई) :-   महाराणा उदयसिंह के शासनकाल में अकबर ने चित्तौड़ पर आक्रमण किया 1567 ई. में चित्तौड़ का तीसरा सांका हुआ, जिसमें गम्भीरी नदी के करीब ठाकुर सांडा वीरगति को प्राप्त हुए 

8. ठाकुर भीमसिंह डोडिया (1567-1576 ई) :- 1576 ई. में हल्दीघाटी के प्रसिद्ध युद्ध में ठाकुर भीमसिंह डोडिया मुग़ल फौज के सेनापति मानसिंह कछवाहा से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए 

9. ठाकुर गोपालदास डोडिया :-

10. ठाकुर जयसिंह डोडिया :- 1614 ई. में महाराणा अमरसिंह व मुगल शहजादे खुर्रम (शाहजहां) के बीच हुए युद्ध में ठाकुर जयसिंह ने वीरता दिखाई 

11. ठाकुर नवलसिंह डोडिया :-

12. ठाकुर इन्द्रभाण डोडिया :-

13. ठाकुर सरदारसिंह डोडिया :- महाराणा जगतसिंह द्वितीय के शासनकाल में ठाकुर सरदारसिंह को लावा का ठिकाना मिला, जहा उन्होंने सरदारगढ़ का किला बनवाया

14. ठाकुर सामन्तसिंह डोडिया :- महाराणा भीमसिंह के शासनकाल में लालसिंह शक्तावत के पुत्र संग्रामसिंह शक्तावत ने सरदारगढ़ के ठाकुर सामन्तसिंह से सरदारगढ़ का किला छीन लिया 

15. ठाकुर रोडसिंह डोडिया :-

16. ठाकुर जोरावरसिंह डोडिया :- 1855 ई. में महाराणा स्वरूपसिंह ने सरदारगढ़ का किला शक्तावतों से लेकर ठाकुर जोरावरसिंह को सौंप दिया 

17. ठाकुर मनोरसिंह डोडिया (जन्म -1830) :- महाराणा सज्जनसिंह ने इनके कार्यो से प्रसन्न होकर इनको प्रथम श्रेणी के सरदारों में शामिल किया इनके तीन पुत्रों का देहान्त इनके सामने ही हुआ, जिसकी वजह से इनके पौत्र सोहनसिंह उत्तराधिकारी हुए

18. ठाकुर सोहनसिंह डोडिया (1903) :- जन्म-1872 इन्होने ने रावत रतनसिंह बोहेरा की पुत्री राजकुमारी सौभाग्य कुँवर से विवाह किया

19. ठाकुर लक्ष्मणसिंह डोडिया :-

20. ठाकुर अमरसिंह डोडिया :-   

21. ठाकुर मानसिंह डोडिया :- गुजरात में दांता की रानी चन्द्रा कुमारी से विवाह किया डोडिया मानसिंह जी के दो पुत्र :- 
1-  कुंवर महिपाल सिंह डोडिया :-
2-  कुंवर प्रताप सिंह डोडिया :- 7 दिसम्बर 1993 को उमा कुमारी से विवाह हुआ दियोदर (गुजरात) के गुमान सिंह जी की सब से बड़ी पुत्री थी
कुंवर प्रतापसिंह डोडिया के पुत्र गिरिराज सिंह डोडिया है

22. ठाकुर महिपाल सिंह डोडिया :- वर्तमान में सरदारगढ़ के ठाकुर महिपाल सिंह जी है और इनका जन्म 2 फरवरी 1961 को हुआ इन की शिक्षा Mayo Collage, Ajmer (1979) से हुई इन की शादी 4 दिसम्बर 1986 को भावनगर के लखानका की कुमारी धरित्री राओल से हुई इन के एक पुत्र और दो पुत्रियां है
1. बाईसा बृन्द्रा कुमारी  :- जन्म 1 अप्रैल 1990, इन का विवाह कुंवर अक्षय पल से हुआ

2. बाईसा राधिका कुमारी :- जन्म 22 अप्रैल 1993

3. कुंवर अखैराज सिंह डोडिया :- जन्म 7 जनवरी 1997


वर्तमान काल की तस्वीरें 

कुंवर अखैराज सिंह डोडिया,बाईसा बृन्द्रा कुमारी और कुंवर अक्षय पल 




ठाकुर अरविन्द सिंह मेवाड़, ठाकुर महिपाल सिंह डोडिया और  कुंवर अखैराज सिंह डोडिया




ठाकुर अरविन्द सिंह मेवाड़ और ठाकुर महिपाल सिंह डोडिया परिवार 

कुंदन सिंह डोडिया S/O ठाकुर हिरा सिंह डोडिया 
ठिकाना – नरदास का गुड़ा, दिवेर मेवाड़ [सरदारगढ़]
तहसील -  देवगढ़
जिला -     राजसमंद 
Contact = 916628808075688563505

Whatsapp Number  = 9166288080




Sunday, May 3, 2020

हिंगलाज माता और डोडिया राजपूत का इतिहास

जय हिंगलाज माता जी





देवी माँ का मंत्र । 

ओम हिंगुले परम हिंगुले तनु शैक्ति मन 

शिवे ओम श्री हिंगुलायनमः श्री हिंगलाज माता की जय 

हिंगलाज देवी से सम्बन्धित छंद गीत अवश्य मिलता है। 

सातो द्वीप शक्ति सब रात को रचात रास। 

प्रात:आप तिहु मात हिंगलाज गिर में॥ 

अर्थात = सातो द्वीपों में सब शक्तियां रात्रि में रास रचाती है और प्रात:काल सब शक्तियां भगवती हिंगलाज के गिर में आ जाती है। यह हिन्दू देवी सत्ती को समर्पित इक्यावन शक्तिपीठों में से एक है। इस देवी को हिंगलाज देवी या हिंगुला देवी भी कहते हैं। उत्पत्ति की एक कथा के अनुसार जब देवी सत्ती ने आत्मदाह किया तो भगवान शिव जी उनके शव को लेकर ब्रह्मांड में घूमने लगे। शिव के मोह को भंग करने के लिए भगवान विष्णु ने सत्ती के शरीर को 51 खंडों मे विभक्त कर दिया जहाँ - जहाँ सत्ती के अंग- प्रत्यंग गिरे वह स्थान शक्तिपीठ कहलाये । केश गिरने से महाकाली, नैन गिरने से नैना देवी, कुरूक्षेत्र मे गुल्फ गिरने से भद्रकाली, सहारनपुर के पास शिवालिक पर्वत पर शीश गिरने से शाकम्भरीआदि शक्तिपीठ बन गये सती माता के शव को भगवान विष्णु के सुदर्शन चक्र से काटे जाने पर यहां उनका ब्रह्मरंध्र (सिर) गिरा था। इस लिए हिंगलाज देवी के रूप में पूजा जाता है गुजरात और राजस्थान में भी उनके लिए समर्पित मंदिर बने हुए हैं
विशेष रूप से संस्कृत में हिंदू शास्त्रों में हिंगुला, हिंगलाजा और हिंगुलता के नाम से जाना जाता है। देवी को हिंगलाज माता (मां हिंगलाज), हिंगलाज देवी, हिंगुला देवी (लाल देवी या हिंगुला की देवी) और कोट्टारी या कोटवी के रूप में भी जाना जाता है। 
यह डोडिया राजपूत की कुलदेवी है
परशुराम जी द्वारा 21 बार क्षत्रियों का अंत किए जाने पर बचे हुए क्षत्रियों ने माता हिंगलाज से प्राण रक्षा की प्रार्थना की। माता ने क्षत्रियों को ब्रह्मक्षत्रिय बना दिया इस से परशुराम से इन्हें अभय दान मिल गया।


एक मान्यता यह भी है कि रावण के वध के बाद भगवान राम को ब्रह्म हत्या का पाप लगा। इस पाप से मुक्ति पाने के लिए भगवान राम ने भी हिंगलाज देवी की यात्रा की थी। श्री राम ने यहां पर एक यज्ञ भी किया था, श्री राम के अलावा यहा परशुराम, गुरू नानक देव, गुरू गोरखनाथ, दादा माखन जैसे सिद्ध संत-महात्मा आ चुके है 

ज्वालामुखी शिखर पर-चंद्र गूप ताल का रिश्ता भगवान राम से भी बताया जाता है। हिंगलाज माता मन्दिर वर्तमान में बलूचिस्तान जो पाकिस्तान में है 




तनोट माँ 




हिंगलाज माता का दूसरा रूप तनोट माता है (तन्नोट माँ) का मन्दिर जैसलमेर जिले से लगभग (130)एक सौ तीस कि॰मी॰ की दूरी पर स्थित हैं। तनोट राय को हिंगलाज माँ का ही रूप कहा कहा जाता है। हिंगलाज माता जो वर्तमान में बलूचिस्तान जो पाकिस्तान में है यह मन्दिर भाटी राजपूत नरेश तणुराव ने वि॰सं॰ 828 में तनोट का मंदिर बनवाकर मूर्ति को स्थापित किया था जैसलमेर के पड़ौसी इलाकों के लोग आज भी इस माता को पूजते आ रहे हैं। 


माता का चमत्कार= भारत और पाकिस्तान के मध्य जो सितम्बर 1965 को लड़ाई हुई थी, उसमें पाकिस्तान के सैनिकों ने मंदिर पर कई बम गिराए थे लेकिन माँ की कृपा से एक भी बम नहीं फटा था। इस लड़ाई में करीब 3000 बम बरसाए, 450 गोले मन्दिर परिसर में गिराये गये लेकिन
मंदिर को एक भी खरोंचा तक नहीं आई, ये बम आज भी मन्दिर परिसर के म्यूजियम में पड़े है तभी से सीमा सुरक्षा बल के जवान इस मन्दिर के प्रति काफी श्रद्धा भाव रखते हैं। 1965 में सुरक्षा सीमा बल (BSF) ने यहा चौकी स्थापना कर इस मन्दिर की पूजा अर्चना व व्यवस्था का कार्यभार संभाला तथा वर्तमान में मन्दिर प्रबंध संचालन एक ट्रस्ट द्वारा किया जा रहा है 1971 में भारत-पाकिस्तान के युद्ध में पंजाब रेजिमेंट और सीमा सुरक्षा बल ने लोंगेवाला में शत्रु के टैंको की धज्जियां उड़ा दी थी लोंगेवाला की जीत के बाद एक विजय स्तम्भा का निर्माण किया गया अब हर वर्ष 16 दिसंबर को उत्सव मनाया जाता है हर वर्ष आश्विन और चैत्र नवरात्रा में यहां विशाल मेले का आयोजन किया जाता है





इतिहास = प्रचीन समय में मामड़िया नाम के एक चारण थे, जिनके कोई 'बेटा-बेटी' अर्थात कोई संतान नहीं थी, वह संतान प्राप्ति के लिए लगभग सात बार हिंगलाज माता की पूरी तरह से पैदल यात्रा की। एक रात को जब उस चारण (गढवी ) को स्वप्न में आकर माता ने पूछा कि तुम्हें बेटा चाहिए या बेटी, तो चारण ने कहा कि आप ही मेरे घर पर जन्म ले लो।
हिंगलाज माता की कृपा से उस चारण के घर पर सात पुत्रियों और एक पुत्र ने जन्म लिया। इनमें से एक आवड माँ थी जिनको तनोट माता के नाम से जाना जाता है। सात पुत्रिया देवी चामकारो से परिपूर्ण थी उन्होंने हूणों के आक्रमण से रक्षा की थी, राजा तणुराव ने इस स्थान को अपनी राजधानी बनाया।



डोडिया राजपूत इतिहास की जानकारी




1. प्रथम कुलदेवी - हिंगलाज माता (नवमी की पूजा)

2. दूसरी देवी - नागणेची माता (आठम की पूजा)

3. तीसरी कुलदेवी - चामुंडा माता (दशमी की पूजा)
(विशेष मध्यप्रदेश) में चामुंडा माता डोडिया की कुलदेवी के रूप में पूजनीय कुछ अन्य क्षेत्र में भी डोडिया की कुलदेवी देवी है 

4. जन्म स्थली - आबू अग्निकुण्ड  (केले के डोड़े से)

5. वंश –  अग्निवंश


6. निवास - मुल्तान नगर (दिपंग देव की राजधानी)


7.वेद - यजुर्वेद 

8. डोडिया राजपूत राजवंश की उत्पत्ति – 
(क्षत्रिय वंश की पुनः स्थापना के लिए डाली गई हवन सामग्री के आबू अग्निकुण्ड से निकले छीटे असुरी शक्ति को रोकने के लिए रोपे गये केले के कदली स्तंभ जिनके फलस्वरूप आदिपुरुष दिपंग डोडिया का केले के डोडे पुष्पकली से जन्म हुआ जिनका वंश डोडिया राजपूत कहलाया

9 . शाखा - स्वतंत्र डोडिया राजपूत राजवंश 
डोडिया राजपूत किसी और राजपूत राजवंश की शाखा नहीं है
डोडिया राजपूत स्वतंत्र राजपूत है 

10 . गंगावत डोडिया, पुरावत डोडिया, इन्द्रभाणोत डोडिया लगाने का कारण - दो भाइयो के नाम पर गंगावत और पुरावत डोडिया कहलाने लगे मध्यप्रदेश में गंगा सिंह जी डोडिया के नाम पर गंगावत डोडिया कहलाये, गंगा सिंह जी डोडिया के वंशज मध्यप्रदेश में पुर सिंह जी डोडिया के नाम पर पुरावत डोडिया कहलाये पुर सिंह जी डोडिया के वंशज इन्द्रभाणोत डोडिया लावा (सरदारगढ़) ठिकाने के इन्द्रभाण सिंह जी डोडिया के वंशज इन्द्रभाणोत डोडिया कहलाये डोडिया राजपूत के शासन का नाम डोडिया के साथ कुछ क्षेत्र में शासन का नाम भी लगाते है शासन का नाम लगाने से डोडिया की अलग शाखा नहीं है, यहां डोडिया राजपूत शासक का नाम डोडिया के साथ जोड़ा गया है, शासक का नाम जैसे गंगावत डोडिया, पुरावत डोडिया, इन्द्रभाणोत डोडिया, आशावत डोडिया, मसावत डोडिया यह इस्तेमाल करते है, मध्यप्रदेश क्षेत्र में अधिकांश क्षेत्र में केवल डोडिया शब्द इस्तेमाल होता है मेवाड़ में अधिकांश क्षेत्र में केवल डोडिया शब्द इस्तेमाल होता है

11. गोत्र - शांडिल्य (दिपंग डोडिया की उत्पति के समय हवन कार्य में सहयोगी व मार्गदर्शक गुरु शांडिल्य ऋषि अग्निकुण्ड के चारो ओर केले के कदली स्तंभ रोपकर हवन कार्य का असुरी शक्ति से रक्षा कवच बनाने वाले गुरु शांडिल्य ऋषि थे) 

12. डोडिया राजवंश के कुलगुरु - शांडिल्य ऋषि 

13. घोडा - सावकरण

14. नगाड़ा  - बिजुवर

15. तोप - महाकाली 

16. बन्दूक - बागवानी 

17. हाथी - ऐरावत 

18. नाई - (सोलकी) सोलंकी

19. ढोल – राजवीदार 

20. नदी – सरयू

21. सत्ती – रम्भादेवी

22. कंवर – कलेशजी

23. धुनी – सागनाड़ा हिमालय पर्वत पर 

24. गणेश – गुणबाय

25. भेरू – काला

26. ╃ तलवार – रणबकी/रणजीत

27. ढोली – दात्यो

28. ढोल के डाको – कडषाण

29. चूड़ो – हाथी

30. प्रथम राज्य - गढ़ गिरनार 

31. डोडिया वंश के आदिपुरुष व प्रथम पुरुष – दिपंग देव 
( केले के डोडे पुष्पकली से उत्पन्न होने वाले पुरुष दिपंग देव डोडिया)

32. डोडिया वंश का वृक्ष - केला 
नोट – डोडिया वंश द्वारा केले का खाना निषेध है ( जिनको इस सम्बन्ध में जानकारी है वह केले को नहीं खाते खास हमारे परिवार के बड़े व्यक्ति वर्तमान में कुछ परिवार को छोड़कर लगभग हर क्षेत्र का डोडिया परिवार केला खाता है राजस्थान में आज भी कुछ परिवार है जिनके मुखिया केला नहीं खाते है 

33. डोडिया वंश की नखइन्द्रभाणोत

34. हिंगलाज माता जी की प्रसादि पूजा - चावल, लापसी की मिट्ठी पूजा नवमी को

35. नागणेची माता की पूजा - आठम को धुप, दिपक किये जाते है

36. डोडिया वंश को बेचरा माता द्वारा प्रदान शस्त्र - मेवाड़ी तलवार

37. शार्दूलगढ़ गुजरात के राव जसकरण डोडिया द्वारा मेवाड़ के महाराणा को चित्तोड़ (रावलगढ़) में प्रदान चमत्कारी शस्त्र - मेवाड़ी तलवार ( वह तलवार आज भी मेवाड़ की सांस्कतिक धरोहर है तलवार के प्रभाव से महाराणा हम्मीर सिंह ने चित्तौड़ राज्य पुनः जीत लिया उसी तलवार से महाराणा प्रताप ने मुगलों से संघर्ष किया और विजय प्राप्त की)

38. कुल देवता - समुंद्र देव 
डोडिया वंश के आदिपुरुष दिपंग देव - हिंगलाज माता और समुंद्र की पूजा करते थे दिपंग की राजधानी मुल्तान थी
(वर्तमान में भैरू जी को कुलदेवता के रूप में पूजा जाता है, अधिकांश क्षेत्र में)

प्रथम कुलदेवी - माँ हिंगलाज का ब्रहमणी अवतार है इस लिए इनके शराब मांस खाना पीना उनका अपमान है विधि विधान से अलग है

दूसरी नेता नागणेची - यह माता बदनोर महाराजा राव संडोजी डोडिया जोधपुर महाराजा के यहा शादी करने गये बारात वापस आ रही थी जोधपुर से बदनोर आते समय रास्ते में रात हो गई शुभह देखा की पालकी में वजन ज्यादा है पालकी के अंदर देखा तो अंदर देवी बैठी है उनसे पूछा हमारे पहले से देवी है माता ने जवाब दिया आज से में भी पूजी जाऊँगी तब से माता नागणेची पालने आयी नागणेची माता राठौर वंश की कुल देवी है लेकिन नागणेची माता पालने आई तब से हिंगलाज माता के साथ डोडिया वंश की पूजनीय देवी बन गई





कुंदन सिंह डोडिया S/O ठाकुर हिरा सिंह डोडिया 

ठिकाना नरदास का गुड़ा, दिवेर मेवाड़ [सरदारगढ़]
तहसीलदेवगढ़
जिला -     राजसमंद 
Contact = 9166288080, 75688563505
Whatsapp Number  = 9166288080

Tuesday, April 7, 2020

मेवाड़ राजपूत ठिकाने



राजपुत की सभी प्रकार की जानकारी उपलब्ध है ! 

मेंवाड राजवंश 

*"त्रण झाला त्रण पुरबिया (चौहान),*
*चूंडावत भड चार |*
*दोय शक्तादो राठौड़,*
*सारंगदेव  पंवार ||"* 

मेवाड़ में सरदारों की तीन श्रेणियाँ हैं ! प्रथम श्रेणी के सरदार  16  (सोलह ) कहलाते थे, इन सरदारों के ठिकाने इस प्रकार हैं !

1) बड़ी सादड़ी (झाला)

2) देलवाड़ा (झाला)

3) गोगुन्दा (झाला)

4) बेदला (चौहान)

5) पारसोली (चौहान)

6) कोठारिया (चौहन

7) सलूम्बर (चुण्डावत)

8) आमेट (चुण्डावत)

9) देवगढ़ (चुण्डावत)

10) बेगूं (चुण्डावत)

11) भीण्डर (शक्तावत)

12) बान्सी (शक्तावत)

13) बदनोर (राठौड़)

14) घाणेराव (राठौड़)

15) कानोड़ (सारंगदेवोत)

16) बीजोलिया (पंवार

बाद में महाराणा अमरसिंह (द्वितीय ) ने अन्य ठिकाने जोड़ने के बादप्रथम श्रेणी के सरदारों की संख्या 21 नियत की थी! इन सरदारों के ठिकाने इस प्रकार हैं

17) भैंसरोड़गढ़ (चुण्डावत)

18) कुराबड़ (चुण्डावत)

19) आसींद (चुण्डावत)

20) मेजा (चुण्डावत)

21) लावा सरदारगढ़ (डोडिया)

नये ठिकाणो के जुड़ने के बाद ये कहा गया

*दो राजा त्रैण राजवी चुण्डा फेरो चार*
*जमादार सुल्तान है डोडीया गढ सरदार*

*मेवाड़ के सामंतों को "उमरावकहा गया |


मेवाड़ के प्रथम श्रेणी सामंतों के ठिकाने -

1) बड़ी सादड़ी (झाला)
काठियावाड़ में हलवद के राजसिंह जी के पुत्र अज्जा के वंशज | अज्जा झाला को यह जागीर महाराणा रायमल ने दी |

2) देलवाड़ा (झाला)
काठियावाड़ में हलवद के राजसिंह जी के पुत्र सज्जा के वंशज | सज्जा झाला को यह जागीर महाराणा रायमल ने दी |

3) गोगुन्दा (झाला)
यह जागीर महाराणा अमरसिंह प्रथम ने शत्रुसाल झाला के छोटे पुत्र कान्हसिंह को दी थी 

4) बेदला (चौहान)
सम्राट पृथ्वीराज चौहान के वंशधर चंद्रभान चौहान के वंशज

5) पारसोली (चौहान)
बेदला के स्वामी रामचंद्र चौहान के छोटे पुत्र केसरीसिंह के वंशज | केसरीसिंह को यह जागीर महाराणा राजसिंह से मिली |

6) कोठारिया (चौहान)
रणथम्भौर के अंतिम चौहान राजा हम्मीर के वंशधर माणिकचंद चौहान के वंशज

7) सलूम्बर (चुण्डावत)
महाराणा लाखा के ज्येष्ठ पुत्र रावत चुण्डा के वंशज

8) आमेट (चुण्डावत)
रावत चुण्डा के प्रपौत्र जग्गा चुण्डावत के वंशज।

9) देवगढ़ (चुण्डावत)
रावत चुण्डा के प्रपौत्र सांगा चुण्डावत के वंशज।

10) बेगूं (चुण्डावत)
सलूम्बर रावत साईंदास चुण्डावत के भाई खेंगार के पुत्र गोविंददास के वंशज।

11) भीण्डर (शक्तावत)
महाराणा उदयसिंह के दूसरे पुत्र महाराज शक्तिसिंह के ज्येष्ठ पुत्र भाण को यह जागीर महाराणा प्रताप से मिली |

12) बान्सी (शक्तावत)
महाराज शक्तिसिंह के पुत्र रावत अचलदास के वंशज | रावत अचलदास को यह जागीर महाराणा प्रताप से मिली |

13) बदनोर (राठौड़)
मेड़ता के वीर योद्धा जयमल राठौड़ के वंशज | जयमल राठौड़ को यह जागीर महाराणा उदयसिंह से मिली |

14) घाणेराव (राठौड़)
मेड़ता के राव वीरमदेव के पुत्र  जयमल राठौड़ के भाई ठाकुर प्रताप सिंह के वंशज

15) कानोड़ (सारंगदेवोत)
महाराणा लाखा के पुत्र अज्जा के बेटे सारंगदेव के वंशज | सारंगदेव को यह जागीर महाराणा रायमल ने दी |

16) बीजोलिया (पंवार)
मालवा के परमार वंश से निकले हुए अशोक पंवार के वंशज

*अन्य 5 ठिकाने जो बाद में जोड़े गए*

17) भैंसरोड़गढ़ (चुण्डावत)
सलूम्बर के रावत केसरीसिंह चुण्डावत प्रथम के वंशज

18) कुराबड़ (चुण्डावत)
सलूम्बर के रावत केसरीसिंह चुण्डावत प्रथम के तीसरे पुत्र अर्जुनसिंह के वंशज

19) आसींद (चुण्डावत)
कुराबड़ के रावत अर्जुनसिंह के चौथे पुत्र ठाकुर अजीतसिंह के वंशज

20) मेजा (चुण्डावत)
आमेट के रावत माधवसिंह के चौथे पुत्र हरिसिंह के छठे वंशधर बेमाली वाले जालिमसिंह के वंशज

21) सरदारगढ़ (डोडिया)
काठियावाड़ में स्थित शार्दूलगढ़ के सिंह डोडिया के पुत्र धवल के वंशज 


*द्वितीय श्रेणी के मेवाड़ में 32 ठिकाणे*
1) हमीरगढ़ (राणावत)
महाराणा उदयसिंह के पुत्र वीरमदेव के वंशज

2) चावण्ड (चुण्डावत)
सलूम्बर के रावत कुबेरसिंह चुण्डावत के 5वें पुत्र अभयसिंह के वंशज।

3) भदेसर (चुण्डावत)
सलूम्बर के रावत भीमसिंह चुण्डावत के दूसरे पुत्र भैरवसिंह के वंशज

4) बोहेड़ा (शक्तावत)
भीण्डर के महाराज मोहकम सिंह द्वितीय के दूसरे पुत्र फतहसिंह के वंशज

5) भूंणास (राणावत)
महाराणा राजसिंह के 8वें पुत्र बहादुरसिंह के वंशज

6) पीपल्या (शक्तावत)
महाराणा उदयसिंह के दूसरे पुत्र महाराज शक्तिसिंह के 13वें पुत्र राजसिंह शक्तावत के दूसरे बेटे कल्याणसिंह के वंशज

7) बेमाली (चुण्डावत)
आमेट के रावत माधवसिंह के तीसरे पुत्र हरिसिंह के वंशज

8) ताणा (झाला)
सादड़ी के स्वामी कीर्तिसिंह के दूसरे पुत्र नाथसिंह के वंशज

9) रामपुरा (राठौड़)
बदनोर के स्वामी जोधसिंह के पुत्र गिरधारी सिंह के वंशज

10) खैराबाद (राणावतमहाराणा उदयसिंह के तीसरे पुत्र वीरमदेव के वंशज

11) महुवा (राणावत)
खैराबाद के स्वामी संग्रामसिंह के तीसरे पुत्र पृथ्वीराज के वंशज

12) लूणदा (चुण्डावत)
सलूम्बर रावत किशनदास चुण्डावत के 10वें पुत्र विट्ठलदास के वंशज

13) थाणा (चुण्डावत)
लूणदा के स्वामी रणछोड़दास के ज्येष्ठ पुत्र अजबसिंह के वंशज

14) जरखाणा/धनेर्या (राणावत)
शिवरती के महाराज अर्जुनसिंह के दूसरे पुत्र बहादुरसिंह के वंशज

15) केलवा (राठौड़)
मारवाड़ के राव सलखा के द्वितीय पुत्र जैतमाल के वंशधर बीदा राठौड़ के वंशज

16) बड़ी रूपाहेली (राठौड़)
बदनोर के वीर योद्धा जयमल राठौड़ के प्रपौत्र श्यामलदास के तीसरे पुत्र साहबसिंह के वंशज

17) भगवानपुरा (चुण्डावत)
देवगढ़ के रावत जसवंतसिंह के तीसरे पुत्र सरूपसिंह के वंशज

18) नेतावल (राणावत)
महाराणा संग्रामसिंह द्वितीय के दूसरे पुत्र बागोर महाराज नाथसिंह के दूसरे बेटे सूरतसिंह के वंशज

19) पीलाधर (राणावत)
महाराणा संग्रामसिंह द्वितीय के पुत्र महाराज नाथसिंह के चौथे पुत्र भगवतसिंह के वंशज

20) निम्बाहेड़ा/लीमाड़ा (राठौड़)
बदनोर के ठाकुर सांवलदास राठौड़ के 5वें पुत्र अमरसिंह के वंशज

21) बाठरड़ा (सारंगदेवोत)
रावत मानसिंह सारंगदेवोत के छठे पुत्र सूरतसिंह के वंशज

22) बंबोरी (पंवार)
अजमेर जिले के श्रीनगर वाले कर्मचंद पंवार के वंशज

23) सनवाड़ (राणावत)
महाराणा उदयसिंह के तीसरे पुत्र वीरमदेव के वंशज | खैराबाद के स्वामी संग्रामसिंह के छोटे पुत्र शंभूसिंह को सनवाड़ की जागीर मिली |

24) करेड़ा (चुण्डावत)
देवगढ़ रावत जसवंतसिंह के पुत्र गोपालदास के वंशज

25) अमरगढ़ (कानावत)
महाराणा उदयसिंह के 5वें पुत्र कान्हसिंह के वंशज

26) लसाणी (चुण्डावत)
आमेट के रावत पत्ता चुण्डावत के चौथे पुत्र शेखा के बेटे दलपतसिंह को महाराणा राजसिंह से यह जागीर मिली |

27) धरियावद (राणावत)
महाराणा प्रताप के तीसरे पुत्र सहसमल के वंशज

28) फलीचड़ा (चौहान)
कोठारिया के रावत रुक्मांगद के पुत्र हरिनाथ के वंशज

29) संग्रामगढ़ (चुण्डावत)
देवगढ़ के रावत संग्रामसिंह के तीसरे पुत्र जयसिंह के वंशज